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Hymn No. 2216 | Date: 14-Mar-2001
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काका मेरे काका, कैसे सुनाऊँ प्रेम का राग, जो बुझने ना दे मेरे भीतर की आग।
काका मेरे काका, कैसे सुनाऊँ प्रेम का राग, जो बुझने ना दे मेरे भीतर की आग।
अरे। न देना चाहा कुछ तो स्वीकार कर ले मेरे अंदर के छुपी खामियों को।
तड़प रहा हूँ तेरे प्यार के वास्ते, चलना सीखा दे राहे अमर प्रेम में।
आवाज मेरी पहुँच न पाये तो, तू ही लगा दे आवाज मेरे वास्ते।
योग्यता नहीं मुझमे तो योग्य बना दे तू मुझे प्यार से अपने।
मेरे ख्वाबह बेकार तो दे दे सारे ख्वाब तेरे, जो मिआ दे मुझको।
नाचीज ने मुंह फेरा है हकीकतों से, तू बन हकीकत मेरी जिंदगी की।
सवाल जा रहा करने को कोई तुझसे, पर मेरी बात को सुन तो ले।
बड़े लोगों की दुनिया में हूँ इन्सान अदना सा, क्या अपने का कोई हक नहीं तुझपे।
सनम मौके का फायदा उठाना आता नहीं, पर दिल की बात सुनते रहना तू सदा।


- डॉ.संतोष सिंह