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Hymn No. 2214 | Date: 12-Mar-2001
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शब्दों के सांचे में गढने चला तेरे रूप को, गढता गया गढ न सका तेरे स्वरूप को।
शब्दों के सांचे में गढने चला तेरे रूप को, गढता गया गढ न सका तेरे स्वरूप को।
हार हमने न मानी, मिलाके उसमें प्यार किया एक और प्रयास, गढ डाला तेरे रूप को।
श्रध्दा ने ज्योत जलायी, तूने कृपा बरसायी, अश्कों के बीच अपलक निहारता रहा है।
फूटा ऐसा राग जो लगा गया तेरे जियरा में आग, बरसों बरस की तड़प को और भड़का गया।
जो देखे थे ख्वाब वो ढल गये हकीकतों में, तेरा हाथ पकड़ते जन्नत को जीते जी पा गया।
जो मांगी थी मन्नत एक एक करके पूरी होने लगी, तेरे दिल में बसते तेरा जहाँ बदल गया।
विश्वास से पकड़ा था दामन, मिले राह में कांटें या खुशहाली, तेरे संग चलना हमको रास आ गया।
दास्ताँ जो मेरी जुड़ गयी तुझसे, हो चाहे कितना भी उलट फेर मैं तो तेरे प्यार में रम गया।
जादु तो तुझमे था जो मचा दिया हलचल रोम रोम में मेरे, तेरे दिल में हलचल मचाने के वास्ते।
नमी है आँखो में तो इस बात से क्यों अलग हूँ अब तक तुझसे, ऐसा क्या कर दूं जो समा जाऊँ तुझमें


- डॉ.संतोष सिंह