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Hymn No. 2212 | Date: 11-Mar-2001
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मोह नो पड़लो छें, आँख ऊपर मांरा, दूर करी नांखजें ओं।़ पुरन परमात्मा...
मोह नो पड़लो छें, आँख ऊपर मांरा, दूर करी नांखजें ओं।़ पुरन परमात्मा...
अनेकों कर्मों नो भार छें, उपरा मांरा, मिटवा वास्ते उपाय बतावी देंजे, ओं।़
अज्ञान नों रमकड़ाs रमें इंद्रियां क्यार थी, वंश मां केंवी रीते थाय शिकवाई देजें, ओं।़
सतत् खेल चाले छें, मांरा मनं मां, समावी लेंजे तारा अपरिमित मनु मां, ओं।़
संतापयलो छे तन अनेक कामनाओं थी, विमुक्त करी दे तू मने तांरा प्रेम मां...
संकटवायलो छों न जाने केंटला पूर्व ग्रहो थी, सांकळी लें तू मनें तारा भक्ति मां ओं।़ पुरन
हद्रयामांअने कों अनजानो ज्वार उत्पन्न थाय, समाविष्ट करीलें मांरा हईया ने मुंकी दे तारां प्रेम जाता
जे जे विषमताओं दूर कर छें तारा थी मने, दूरी करी नाखजें समांववा माटें ओं पुरन...
चाले छें खेल जींवन मृत्यु नु, आ जेंल मां थी छुड़ावी ने मुंकी दे तारां प्रेम जाल मां ओ पुरन...
कोई पण दांस्ता ना स्वीकार छे दुनिया मां, तांरा दासतां मां राखी आज थी तू हमने से...


- डॉ.संतोष सिंह