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Hymn No. 2034 | Date: 13-Oct-2000
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काश होता कुछ ऐसा, जब चाहूँ तू पहुँच जाता मेरे पास।
काश होता कुछ ऐसा, जब चाहूँ तू पहुँच जाता मेरे पास।
मत पूँछ क्या होता मेरा हाल, जीते जी स्वर्ग धरा पे उतर जाता ।
होगी मेरी बाते मुर्खता से, पर तुझे लेके मन कुछ भी है सोचता।
बच्चो जैसा निर्मल मन हो कैसे, अज्ञानता का सागर ठांडा मारे मेरे भीतर।
फिर भी देखता हूँ दिवास्वप्न, अपना तुझे कुछ भी करके बनाने का।
हंसता होगा तू खूब, मुझ जैसे खिचड़ी पकाने वालों पे।
गलती नहीं मेरी दाल, ओ मैं क्या करूं जो खोल दे तू अपना द्वार।
धूष्ठता कूट – कूटके भरी है, कितना भी दुत्कारें पहुँचता हूँ पास तेरे।
मुझे तो इस बात से भी संतोष है किसी भी रुख में रख ले पास अपने।
रहते – रहते तेरे संग आजाऊ आदतों से बाज अपनी, बन जाऊँ मनमाफिक दास तेरा।


- डॉ.संतोष सिंह