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Hymn No. 2028 | Date: 10-Oct-2000
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पता नहीं क्या ऐसा है तुझमे, फूट पड़ते है राग देखते ही तुझको।
पता नहीं क्या ऐसा है तुझमे, फूट पड़ते है राग देखते ही तुझको।
रह नहीं पाता हूँ आपे में चाहके, थिरक पड़ते, है कदम अनायास मेरे।
अंतर में न जाने क्या होता है, दौड़ जाती है सिरहन सारे तन में।
अपलक निहारता हूँ तुझको, परदें उठने हो जाते है शुरू नजरों पे से।
कुछ अजीब सा लगता हें, निश्वाश होते हुये जीवित रहता हूँ संसार में।
किसी को मानने के लिये ना कहता हूँ, ये तो गत है मेरी तेरे प्यार में।
जी भरता नहीं रहूं कितना भी देर करीब तेरे, की अभी कुछ है बाकी।
आनंद के आलम में रहता हूँ चूर, पर को करना चाहता हूँ दूर।
कुछ भी कह ले होगा सच वो, पर मेरे अंतर में न रह चुपचाप तू।
बहुत हो गयी आंख मिचौली, पर अब करना चाहूं मस्ती साक्षात् तेरे संग।


- डॉ.संतोष सिंह