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Hymn No. 2024 | Date: 05-Oct-2000
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हरना होगा आज तुझे मेरे भीतर के दशानन को।
हरना होगा आज तुझे मेरे भीतर के दशानन को।
न जाने कितने काल से छिपा है मेरे अंतर में।
बहुत चाहा इसे छुटकारा पाना हावी हुआ, हो गया हावी बाद में ये।
गंवारा न था साथ भी फिर भी रहा साथ – साथ जन्म दर जन्म।
बड़े विश्वास से पुकार रहा हूँ, तू कर दे खत्म इसे आज।
वनवास झेलते बीते न जाने युग कितने, कब होगा मिलन हमारा।
तेरे सिवाय न कर सकता है खत्म कोई और इस दशानन को।
इसने दास बनाके किया है मुझमें न जाने कितने सदियों से वारा।
तेरे वश है, रखनी होगी लाज तुझे मेरी।
हर वर्ष आने वाले पर्व में बदल दे तू मुक्ति मेरी।


- डॉ.संतोष सिंह