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Hymn No. 2015 | Date: 04-Oct-2000
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सवाल पे सवाल कई बार किये, हर बार पाया जवाब इशारों में।
सवाल पे सवाल कई बार किये, हर बार पाया जवाब इशारों में।
अब चाहता हूँ तेरा उत्तर स्पष्ट, बदले में स्वीकार है न मानने की कोई सजा।
बहुत बार किया अपने तन – मन की, अब करना चाहूँ तेरे दिल की।
खिलखिला बहुत रहा मैं पर अंतर में, खिलखिलाने न आया।
जात मेरी कौन सी है जो तेरे सुधारने पे सुधरती नहीं लटकाये रहे अधर में।
ऐ दुनिया के तारनहार अब तो तू मुझे तार ले दुनिया से।
गल्तियाँ तो कई है की, पर तू इतना न खा खार मुझसे कर्मों के बहाने।
करूंगा लाखों बार तेरा मान, मनुव्वल अपनी हैसियत को मिटाके।
मुझे न करनी है तुझसे बहस, सर झूका के मानूँगा हर बात तेरी।
ऐसा न है कुछ जिसे तू न बदल सके, राह देखूंगा सब्र से तेरी।


- डॉ.संतोष सिंह