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Hymn No. 2014 | Date: 04-Oct-2000
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करना चाहता हूँ कुछ और, कर बैठता हूँ कुछ और।
करना चाहता हूँ कुछ और, कर बैठता हूँ कुछ और।
लोगों के विचार गलत है, मेरा तो आचार गलत है।
करता हूँ तेरा प्रचार बजा – बजाके गाल, ढाल नहीं पाता मन को अनुरुप तेरे।
तू ही बता कैसे जानूँगा, तेरे शाश्वत स्वरूप को, जब तक तोडूंगा छद्म आवरण को।
माना की करनी मेरी है तेरी असीम कृपा के बाद भी।
क्या प्रभु मेरे भाग्य मे बदा है तेरे पास रहके तुझपे कलंक लगाना।
क्यूँ नहीं रमा रहता हूँ हर पल चरणों में तेरे खोके सुध – बुध।
तेरे सामने कई बार रोया, क्या मेरे आँसू सच्चे न है जो पसीजे दिल तेरा।
दीवानों की महफिल में शिरकत की, फिर भी न चढा जाम तेरे प्यार का।
आखिर ऐसा क्या है जिसे चाहके भी क्षय नहीं कर पाता हूँ।


- डॉ.संतोष सिंह