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Hymn No. 2010 | Date: 03-Oct-2000
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मैं हूँ पागल पिता कब क्या कर बैठूँ, मुझे न है पता।
मैं हूँ पागल पिता कब क्या कर बैठूँ, मुझे न है पता।
गलत है या सही इसकी फिकर किये बगैर करता रहता हूँ।
मेरे मुख को मोड़ दे और तेरे, चाहे हो जो भी हाल मेरा।
बहुत जी लिया तेरे बिना, कुछ भी करके सिखादे जीना मुताबिक तेरे।
मुसाफिर रहा हूँ न जाने कब से, अब तू बन जा हमसफर मेरा।
ठहराव चाहता हूँ पास तेरे, तेरे बिना हुआ है जीना मुश्किल मेरा।
दिल में तू बस जा या दिल को दिल में हिल मिल जाने दे।
राग जीवन में कई है, जन्म दे दे मेरे भीतर तेरे प्यार के रोग को।
विश्वास आगे को होने न देना कम, जो जलाया है तूने प्यार से।
श्रध्दा – सुमन मिलके कर देंगे मुझे सिध्द तेरे प्यार भरे हमसफर में।


- डॉ.संतोष सिंह