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Hymn No. 2009 | Date: 02-Oct-2000
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बंदा है गुलाम, सदियों पुराना तेरा, मन को बना न पाया गुलाम।
बंदा है गुलाम, सदियों पुराना तेरा, मन को बना न पाया गुलाम।
लाख झूठ बोला संसार में, तेरे सामने आते ही बयाँ किया सच सच।
परवाह न है उसे सजा की, वो तो डरता है प्यार को खोने से।
कमियों का रोना रोता नहीं, हर हाल में उबरना चाहे तेरे वास्ते,
मान या न मान तू डरता नहीं किसीसे, वो तो भुलाके प्यार करना चाहे तुझसे।
मत देख पापी मन को मेरे, झाँख के देख ले अंतर को मेरे।
किसी ना किसी बहाने होगा जो प्रवेश तेरा, मिट जायेगा सारा राग द्वेष भीतर का।
तेरा कुछ न जायेगा, गिरते गिरते सम्भल जायेंगा ऐ परम पिता हम।
जब जब छेड़ी प्यार की बात, कुछ ना कुछ ऐसा हुआँ बनती बात बिगड़ गयी।
मत खेल इतना तू अब हमसे, माटी का बना हूँ न जाने कब फूट जाऊँगा।


- डॉ.संतोष सिंह