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Hymn No. 1990 | Date: 20-Sep-2000
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कुछ सोच नही सकता प्यार के सिवाय।
कुछ सोच नही सकता प्यार के सिवाय।
कुछ कर नहीं पाता प्यार के आगे।
कहीं का रह नहीं जाता प्यार के पीछे।
जाती रहती है सारी समझ प्यार के अंदर।
किसी काम का रह नहीं जाता प्यार के सामनें।
मजबूर बन जाता हूँ प्यार के होते।
बरस बीत जाते है पलों में प्यार के होने पे।
फरक नहीं पडता हो चाहे कुछ प्यार में रहते जो चूर।
दूरियाँ बदलती है नजदीकियों में प्यार भरे लम्हों में।
रहके रहते नहीं साथ अपने आपके प्यार के होते।

बहुत बार कहा तुझसे, तूने ना सूनी एक मेरी।
तेरी मर्जी हम तो है तेरे प्यार के दर्दी।


- डॉ.संतोष सिंह