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Hymn No. 1985 | Date: 15-Sep-2000
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सलीके में जीने वाले क्या जानेगे प्यार करना।
सलीके में जीने वाले क्या जानेगे प्यार करना।
जो दिखावे में करते है विश्वास, वो अंतर की बात क्या जानेगे।
अरे प्यार करने वालें कहं सुनं लेतें है प्यार नजरों से।
जिसने पहचाना बाह्य आंडबरो से प्यार वो क्या करेंगा प्यार।
यहाँ तो दिल की बात दिल से होती है, चाहे मौन क्यों न हों।
सारे कयास उलट जाते है, सब कुछ सिमट जाता है प्यार में।
मिटाये न मिटती छाप जेहन पर से रहती है छाप अमिट इसकी।
दाम देने से न मिलता, हाँ कभी कभार नाम गुनगुनाने से है मिल जाता।
नशा बिन किये रहा है नशा हमेशा, प्यार करने वालों पे।
होता रहे कुछ भी जमाने में, वो तो रहता है प्यार की मस्ती में।


- डॉ.संतोष सिंह