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Hymn No. 1975 | Date: 10-Sep-2000
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प्रभु मेरी दाल तू ना गलने देना कभी, इस भोलेपन में छुपा है इक् कमीना।
प्रभु मेरी दाल तू ना गलने देना कभी, इस भोलेपन में छुपा है इक् कमीना।
तुझको हर पल छलता है मीठी – मीठी बात बनाके, पर भीतर ही भीतर रहता हूँ दिन राज जलता।
जलके तो होता हूँ खाक कई बार, ईच्छा रूपी क्षण हो जाता है रातों – रात हरा – भरा।
खरा बनके है रहना चाहे पड़े तेरे प्यार में कुछ भी सहना बहना नहीं किसी भी भाव में।
छांव हो या धूप फर्क न पड़ता है इस अजीबो गरीब को रखना तू अपने करीब।
धीरे धीरे मुरीद बनता जा रहा हूँ, तेरा कहा जो होता न था वो हो जाता है यूं ही।
भूखा न जाने क्या क्या चीजों का, पर आग जगाये रखना तू प्यार का दिल में मेरे।
हवाला किस बात का दूं तुझे, बड़ी गड़बड़ की है पर ना करुँगा बड़बड़ अब किसी से।
जो ना हुआँ था अब तक मुझसे, वो करना है तुझकों मेरा किया हुआँ मिटा कें।
जो भी कंह तू है मंजूर हमकें आँख बंद करके, तेरा कहाँ करने में आता है हमको मजा।


- डॉ.संतोष सिंह