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Hymn No. 1974 | Date: 10-Sep-2000
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नजर नही लगाना चाहता हूं, तेरे प्यार के आगे सर झुकाना चाहता हूँ।
नजर नही लगाना चाहता हूं, तेरे प्यार के आगे सर झुकाना चाहता हूँ।
तेरी महफिल में करते है शिरकत एक से एक दीवाने, मुख बेगाने की ना कोई औकात।
सजदा कर लू कितना भी दे न सकता हूँ, वो जो मिल जाती है प्यार की कशिश में आके।
बनावटपन है सर से पांव तक मुझमें, लगा दूं कितना भी जोर – शोर कर सकता हूँ प्यार नहीं।
हसरते तो पाली है मन में अनेक, पर दिल तो है बिलकूल खाली।
करना आसान है कर दिखाना मुश्किल, जलता हूँ अपने आप से न किसी के अंदाज पे।
सच्ची चाहत से मिलता है सच्चा आशिक, झूंठ कापुलिन्दा जाता है कचरे के ढेर में।
तेरी राह के कांटो को सजाऊँ दामन में अपने, मेरी खॉल पे सजे महफिल तेरे मस्तानों का।
शमा बनके रोशन करूँ महफिल को तेरे, परवाना बनके खाक होता रहूँ तेरे नजरों के सामने।
तू ना करना गौर दौर जॉरी रखना महफिल की, जिंदा मुर्दा किसी भी तरह डालना न चाहूँ खलल तेरी महफिल में।
बेजान बनके आया था गुमनाम बनके जाऊँगा, पता भी ना खड़कने देना मेरे रहने ना रहने पे से।
हर जनम में देना मुझको घोर से घोर सजा, बस मेरी स्मृती में तू रहना अनंतकाल तक।


- डॉ.संतोष सिंह