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Hymn No. 1969 | Date: 08-Sep-2000
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अपने – अपने भाग्य की है बात, पाते है हम सब उसी अनुपात से।
अपने – अपने भाग्य की है बात, पाते है हम सब उसी अनुपात से।
कम सें न ज्यादा यें तो किया रहता है करमों के हिसाब से।
फिर भी देता है प्रभु तू पुरुषार्थ का सामर्थ्य इसको धो डालने के वास्ते।
अच्छा हो या बुरा परिणीति तो एक ही है, भोगनां पड़ता है स्वर्ग नरक को।
जिसने अपना किया हुआँ सब कुछ, अर्पित किया, हर हाल में खूश रहा वो।
सुख हो या दुःख सब कुछ बीतने वाला है, तन छूटने पे पाते है बोझ कर्मों का।
बिगड़ने के डर से बिगाड़ते है और अपनी, अंतर को झुठलाके जीते है आडम्बर में।
किया – किया मैंने किया का राग अलापके, दाग लगा बैंठते है नये जन्मों का।
आता है प्रियतम जब प्यार का प्याला लेकें, उसपे भी कर बैंठते है शंका।
स्वारथ होता है अपना स्वार्थ खोजते है उसका, खुली आँखों से धरते है साथ अज्ञान का।


- डॉ.संतोष सिंह