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Hymn No. 1968 | Date: 07-Sep-2000
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कहो चाहे कितना भी तूम कुछ, कहने का बूरा मानूंगा नहीं।
कहो चाहे कितना भी तूम कुछ, कहने का बूरा मानूंगा नहीं।
बैढंग जीवन पे उठाओ तू उंगली, सर नवा के स्वीकारूंगा कमियों को।
मनमानी की लाख चाहे, पर अब तेरी हर इक् बात को मानूंगा।
दिलासा दिलाता नहीं मैं तुझको, पर तेरा कहाँ कर जाऊँगा सब मैं।
ऐ रब पाया हें जीवन तेरी कृपा से, कर जाऊँगा तेरा कहाँ तेरी कृपा से।
अविश्वास तू करना मेरे ऊपर, पर मेरे विश्वास को ना खंडित होने देना।
बड़ी मुश्किल से पाया है तूझे, यूं ही हाथों से न जाने दूँगा तुझको।
मेरी तू मान या न मान, पर मेरी पहचांन सिमंट गयी तुझमे।
आवारा रहा हूँ ताउम्र मैं, मेरी आवारगी को दे दिया लगाम प्यार ने तेरे।
एकदम विपरीत था मैं तुझसे, फिर भी प्रीत पा गया मैं तेरी।


- डॉ.संतोष सिंह