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Hymn No. 1952 | Date: 24-Aug-2000
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सोचा – समझा न कभी काम आया, प्रभु तेरे नाम के सिवाय।
सोचा – समझा न कभी काम आया, प्रभु तेरे नाम के सिवाय।
संसार में है दाम सबका, तेरा दाम कोई आँक न पाया।
संग सबके होके है तू सबसे अलग, सारे कल्पनाओं से परे।
जाना है तू धरे रूप हमारे मन के अनुरूप, पर सचमुच कौन सा है स्वरूप अंतर।
मैं अपनी भावनाओं को लादना नही चाहूँ, पर रहना चाहूँ तेरे भावों के अनुरूप।
वास्तव में हें तू क्या, उसीके मुताबिक रहना चाहूँ तेरे साथ।
तेरे बारे में निराले शब्दों से गढे गये अनुपम गीत गाता रहूँ मस्ती के।
जब न है चाहत तुझे कुछ की, तब तू बता रिझाऊँ तुझें किसपे।
निर्विवाद सत्य है तू परे है इन सबसे, इन सबमें रहके, मैं कैसे रह पाऊँ।
तारने – डूबोने के खेल कि क्यों जरूरत आ पड़ी तुझे, कैसे उबरू तेरे इस खेल से।


- डॉ.संतोष सिंह