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Hymn No. 1951 | Date: 23-Aug-2000
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बिलखता हूँ रोज तेरे सामने, जगा दे दिल में एक बार अलख।
बिलखता हूँ रोज तेरे सामने, जगा दे दिल में एक बार अलख।
पनप रहा है माया के जो छुपा, मुरंझा जायेगी तेरी वक्र भरी नजर से।
काटोगें तो खून न निकले, बह रही है रगो में प्यार भरी रस तेरी कृपा से।
अंत हो जाये सारी कामनाओं का, तेरी यादों में प्रियतम् सफर करते ही।
निकल जाये मन का हर डर, तेरे सिवाय घर न कर पाये कोई तेरे भीतर।
तेरे सिवाय न था कुछ भी मेरे वास्ते जरूर तो क्यों हो रहीं है देरी।
अगर आता है तूझें सताने में मजा तो कबूल है तेरी रजा दिल से।
तब भी खिलखिलाता रहूंगा, किसी भी फिक्र की करुँगा ना जिक्र मन में
दाल जो ना गलती है तेरे पास मेरी गला दूँगा उसे प्यार से अपने।
जो लेकें देखा हूँ सपने तूझें, करुँगा साकार उसे प्यार से अपने।


- डॉ.संतोष सिंह