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Hymn No. 1949 | Date: 22-Aug-2000
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तेरी चॉकरी में आता है हमको जो मजा किसी और के में नहीं।
तेरी चॉकरी में आता है हमको जो मजा किसी और के में नहीं।
तेरा हुक्म बजाने में मचलता है जो दिल किसी और के में नहीं।
तेरी यादों में विचरता है जो मन किसी और के में नहीं।
तेरी चाहत बन गयी है जान मेरी किसी और का नहीं।
तेरे खॉबो को देख जागते सोये किसी और का नहीं।
तेरी धुन में जाता हूँ कहीं और पहुंचता हूँ कहीं और किसी और के मे।
तेरी लगन लगी है ऐसी, हो जाता हूँ मगन किसी और के में नही।
तेरी गीतों को सुनने में जो आता है मजा किसी और के में नहीं।
तेरी और तकते रहने में खो जाता है सुध – बुध किसी और के में नहीं।
तेरी और से क्या ना मिलता है कैसे बताऊँ औरों को वो किसी और के में नही।


- डॉ.संतोष सिंह