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Hymn No. 1948 | Date: 22-Aug-2000
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मैं काबिज होना नहीं चाहता किसीकी जगह पे बाकी मर्जी प्रभु की।
मैं काबिज होना नहीं चाहता किसीकी जगह पे बाकी मर्जी प्रभु की।
मैं किसीका दिल दुखाना नहीं चाहता बाकी मर्जी प्रभु की।
प्रभु तेरा नाम लगाके मैं पीछा छुड़ाना नहीं चाहता उबाकी मर्जी प्रभु की तेरी।
मैं तोब हनां चाहता हूँ, प्रभु के रौ में, सुहाये न सुहाये चाहे किसीको।
दशा हो जाये जो भी मेरी, मैं चुकूँगा नहीं प्रभु का कहीं कहने से।
चीथड़े उड़ाना तू मेरे मैं का निसंकोच, पीते जाऊँगा जाम मय् का।
होश में न करनी है कोई बात, मैं तो सुधरता हूँ प्यार के नशें में।
उड़ाओं लोगों मेरा और और मजाक, में तो मजबूर बनता जाऊँगा।
घायल शेर है जो होते है खतरनाक, छेड़ोगे तो मिलेगी अनजानी सौगात।
यहाँ सोचा – समझा हुआ न है, जो भी है तो उस पूरण परमात्मा का है।


- डॉ.संतोष सिंह