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Hymn No. 1946 | Date: 21-Aug-2000
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दम निकल जाता है तन का, जब छोड़ देता है तू साथ।
दम निकल जाता है तन का, जब छोड़ देता है तू साथ।
तेरे सिवाय सहारा ना दिखता है हमको, संचार करता है विश्वास हममें।
परिणाम के कारण जब टूट जाते है, किसी और वजह से रूठ जाते है।
तब भागते है तेरी ओर, पुकारते है हम तुझको कातर स्वर में।
खेलते है माया में नित्य, जब होती हैं हावी माया निकलने लगता हें दम।
मचाते है चीख पुकार वास्ता देते है प्यार का, ऐसा क्यों किया तूने मेरे संग।
किसी और रंग में रंगके, खेलतें है इच्छाओं के विभिन्न रूपों से।
अपूर्ण रह जाने पे हावी होता है अवसाद हमपे तो लगाते है गुहार तुझसे।
बड़ा अजीबों – गरीब हें हमारा करम, छोड़ते नहीं कुछ भी वक्त बड़ने पे रोते है रोना।
धिनौना है प्रभु हमारे करम, सब जानके कैसे सहता है तू हमको।


- डॉ.संतोष सिंह