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Hymn No. 1935 | Date: 13-Aug-2000
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बांध रहा हूँ प्रीत की अदृश्य डोर, तेरे दिल की कलाई पे।
बांध रहा हूँ प्रीत की अदृश्य डोर, तेरे दिल की कलाई पे।
कोई एक रिश्ता न है मेरा तुझसे, जनम – मरण से परे है नाता तेरा मेरा।
भूलां हूँ अगर मैं इसे, पर भूला तू तो न था, होंने देना दूर तुझसे।
सजा तूने बहुत दे ली, अब थोड़ा सा पान कर लेने दे तेरे प्यार का।
यूं अगर देखा जाय तुझसे नाता जोड़ने में निकल जायेगा दम मेरा कई कई बार।
तेरी कृपा है जो चाहे कह लेते है आधे अधूरे प्यार के नाम पे।
फिर भी रहना तू नरम, सह जाऊँगा कोप को तेरे, सह न पाऊँगा रूठना तेरा।
बड़बोला ही सही, पर हर बार चाहे चाह मेरी ना हो सच्ची एकल ही हो सही।
दिल न चाहे कभी गच्चा देना, चाहे किया कोई काम या ना किया।
पर ना लगने दिया बट्टा तेरे नाम पे, सुबहो – शाम भरसक प्रयास करके तेरा नाम लिया।


- डॉ.संतोष सिंह