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Hymn No. 1926 | Date: 09-Aug-2000
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बॉस मेरा हर करम होता तेरे मुताबिक, कहने से पहले कर जाता तेरा कहाँ।
बॉस मेरा हर करम होता तेरे मुताबिक, कहने से पहले कर जाता तेरा कहाँ।
रोना न होता किसी बात पे, देता सदा अपने कर्मों की सौगात तुझको।
सदियों से रहा है अन्नदाता तू मेरा, बन जा मेरे मन के भावों का भी दाता।
अल्हाद कारक है, तेरे गीत जो भर देते है रोम – रोम में मेरे खुशियों का संगीत ।
झूमता रहता हूँ खोके तुझमे, तेरे पास रहके रह नहीं पाता अपनी आपे में।
मेरी सौत कोई और नहीं है मेरे करम, जो कर जाते है च्युत मन को इसके भ्रम में।
माना मेरे पास है कई कमजोरियाँ, पर तू क्यों हो जाता है कमजोर।
डोरे डाल रखा हूँ तुझपे, फिर भी निशाना क्यों जाता है चूक मेरा।
सुना था प्यार में हर कदम पे बढते है लोग आगे की और।
हम तो चाहते है करना बहुत कुछ जो खत्म प्यार के इस खेल को मिलाके हमको।
रहे तू कहीं जहाँ से वाश रहे मेरे दिल में।
नजर न आयें कुछ तेरे सिवॉय निहारूँ हर पल तुझे।
बीत जाये घंटो मिनटों में तेरे सामने यू ही बैंठे बैंठे।
जानुँ की तू जाने सब कुछ पर हर घटी – घटना का हॉल सुनांना चाँहू।
ऐसा ना हो कुछ, जिसे बिन कहे तुझसे रह जाऊँ मैं।
मन में मेरे उठें जो तरंग, उसपे अधिकार है तेरा।
घेंरा डाल दे तू मेरे चित्त पे पड़े ना किसी फेर में।
परवाह ना करू चाहे हार हो या जीत पर मंजूर हो तुझे।
सोहदे का ओहदा त्याग दूँ, करता है जिनको तू न कबूल।


- डॉ.संतोष सिंह