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Hymn No. 1923 | Date: 08-Aug-2000
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जा रे जा, जा रे जा मत इठला तू अपने आप पे इतना।
जा रे जा, जा रे जा मत इठला तू अपने आप पे इतना।
माना तेरा कोई कुछ ना कर सकता, तू है सर्वोपरि ब्रम्हाण्ड में।
माना ना पड़ी है तुझे किसीकी, तेरे सिवाय नहीं कोई सही।
तू है मस्त अपने आप में, होता रहे जहाँ में कैसी भी हलचल।
रहता है डूबा अपने अंतर में, च्युत ना होये चले कोई भी झोंका।
तू खेलता है हमारे संग अपना अकेलापन दूर करने के वास्ते।
पहनाता है तू हमको हमारे कर्मों का जाल, हमारे बाल की खाल निकालके।
ऐ। यार तेरे हर बात में कारण है और हमारे बातों में स्वार्थ।
तेरी मर्जी चाहे तू जैसे दे परोस, अब हम भी न पछतायेंगे।
लाख आँसू बहाकें या खुशियाँ मनाके, न कोई कारन् दिखलायेंगे।
अपनी बेबसी को तेरी बेबसी मानके, जोरदार ठहाको से ब्रम्हाण्ड गुँजायेगे।
फरक तुझे न पड़ता है तो हमारे दिल पे भी ना पड़ने देंगे फर्क।


- डॉ.संतोष सिंह