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Hymn No. 1921 | Date: 06-Aug-2000
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हर बार सोंचा, अबकी बार न कहूगा कुछ तुझसे।
हर बार सोंचा, अबकी बार न कहूगा कुछ तुझसे।
तेरे सामने आते ही फूटा, कितना भी था रूठा तुझसे।
झूठ जान – अनजाने में कहने की ना सोंची, फिर भी पड़ा झूठा।
इलजाम लगाया है तुने तो बिना ना नुकूर के करता हूँ स्वीकार।
घेले भर की कीमत ना है, फिर भी क्या न किया तू मेरे वास्ते।
कितना भी करूं कुछ, कुछ भी ना है ऐं दाता तेरे सामने।
तरसता हूँ अब भी न जाने किसी चीज के वास्ते तेरे रहते।
सदा से है भीखमंगा, उस भीख को छोड़ दिया तेरी मर्जी पे।
जीवन में लेता नहीं किसी बात से सीख, किया ना कभी कुछ ठीक।


- डॉ.संतोष सिंह