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Hymn No. 1915 | Date: 04-Aug-2000
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राधेय, राधेय, है राधेय, मत छोड़ना तू हमको आधे में।
राधेय, राधेय, है राधेय, मत छोड़ना तू हमको आधे में।
निकला हूँ साधने तुझको, तू साध लेना मेरा दिल को।
दुष्कर है बहुत कुछ करना, सरल हो जाता है तेरे साथ होने पे।
क्यों लेता है जन्म तू युगों के बाद, तरसते है हम जैसे अभागे।
मत रोना रो तू हमारे कर्मों का, निभाना है तुझे तो साथ धरम का।
माना तू जाने सबके दिल का मरम, फिर ऊठती बेरुखी है क्यों।
हमारी नासमझी को अपनी समझ बनाके, मत दे तू इतनी लंबी जुदाई की सजा।
यें कैसी है तेरी खुदाई, जो बना बैठा है सौत अपने ही प्यार का।
समझता नहीं मैं ज्ञान की बातें, ना ही जानता प्रारब्ध के जाल को।
चाहे तू खींच ले मेरे तन मन की खाल को, पर कर लेने दे प्यार भरपूर मुझे।


- डॉ.संतोष सिंह