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Hymn No. 1912 | Date: 03-Aug-2000
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साधा ना खुदको, साधने चला मैं औरो को।
साधा ना खुदको, साधने चला मैं औरो को।
भीतर के तूफां को शांत न करके, जग की आग बुझाने चला।
रागों में बहके, देखो यारों बैरागी में बनने चला।
अंतर की आवाज ना सुनके, तेरे साक्षात्कार की बातें करने चला।
फंसा मैं दो राहों पे, औरों को राह बताने चला।
खुदकी बनती को बचा न पाया, दूजों की बिगड़ी बनाने चला।
दो अर्थों से भरा जीवन जिया, निरर्थक भरा प्रयास किया।
बला भीतर थी, दूसरों की बला को चला मैं टालने।
सहजता से मिले हुये को न जानके, दुर्गम मार्ग को अपनाने चला।


- डॉ.संतोष सिंह