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Hymn No. 1911 | Date: 08-Aug-2000
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क्याँ सजाऊँ तुझे, जो न सजा सका दिल को प्यार से।
क्याँ सजाऊँ तुझे, जो न सजा सका दिल को प्यार से।
कैसे तुझको बनाऊँ यार, जो प्यार के रिश्ते को निभा न सका।
कैसे फरमाऊँ बहुत कुछ, जो तूने ना किया गौरं तो काई मतलब नहीं।
कितना लगाऊँ जोर, जो ना हुआँ शुरू प्यार का दौर तो क्या फायदा।
कितनी भी बात करूँ बड़ी – बड़ी, जो कहके तुझको न निभाया तो बेकार हूँ।
कितना भी गिड़गिड़ाऊँ, जो ना पसीजे हृदय तेरा तो मगरमच्छ के आँसू है मेरे।
कितना भी बनूं जिज्ञासु, जो तुझे अपने प्यार में फांस ना सका तो है व्यर्थ सब।
कितना भी जीवन जी लूँ, जो न आया हाथ तू तो है बेकार में जीवन।
कितना भी जलाऊँ दीप, जो न प्रकटा प्यार का उजास दिल में तो है खराब।
रहता हूँ तेरी कही, सही हो या गलत उतारा न खुद के अंतर में तो है बेकार।


- डॉ.संतोष सिंह