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Hymn No. 1909 | Date: 02-Aug-2000
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आयी धरा पे हेंत की देवी, परम् की कृपा से प्रेम का पाठ पढाने।
आयी धरा पे हेंत की देवी, परम् की कृपा से प्रेम का पाठ पढाने।
आते ही पाला पड़ा संसार के नीरस – भौतिकता के पीछे पागल मतवालों से।
बड़े – बूढ़े हर कोई देंखके उसको, बयाँ करने लगे अपनी समझ को।
उस नासमझ ने समझ लिया प्यार से अपने सगे – लगे वालो को।
मुस्कराते हुये वो मस्त रहे अपने आप में खोके प्रभु का सपना साकार करने में।
वो तो है साक्षात् प्रेम की देवी, जिसके रोम – रोम से फूटे प्रेम किरन।
हेत के बिना दीपक जलन के सिवाय छोड़ता नहीं कोई छाप तन-मन पे।
जब तक हेत नहीं होती, तब तक प्रीति की पूरी नहीं होती।
चित्रसेन तो है मायाजाल में, बिना हेत के कैसे निकलेगा इस जाल से।
सवित्रा होगी किंतनी भी पाक बिन् हेत के रख ना सके दिल को साफ।
हें। प्रभु हम सबको है जरूरत हेतास्विनी की प्रकटाना उसे हमारे दिल में।


- डॉ.संतोष सिंह