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Hymn No. 1907 | Date: 01-Aug-2000
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हों रहा है जो भी संग हमारे होने दे, सिखा दे खुश रहना तू हमको।
हों रहा है जो भी संग हमारे होने दे, सिखा दे खुश रहना तू हमको।
दुनिया को अनुरूप मेरे न ढालके, तू ढाल दे हमको अनुरूप तेरे।
रह न जाये किसी भी तरह की वृत्ति, मेरे चित्त में जो तू समा जाये।
जमाने के संग रहके ना चढ़े जमाने का रंग, इतना हो जाये पक्का तेरे प्यार का रंग।
तकल्लुफ तू ना करना अगर जग सारा समझता है मुझे बावरा, तो करना ना जोर कम प्यार का।
मेरे सारे सवालों का एक – एक करके होने लगा अंत, जो आया करीब प्यार में।
माना आशिकी का रोग था नया – नया, पर तेरा प्यार तो है पुराना इससे ना है हमको बचना।
जाने – जाना और कोई समझ उतरे ना दिल में, तेरे होने पे लीन रहता हूँ तुझमे।
मेरे ऊपर अधिकार है तेरा, तू चाहे – जैसा कर लेना फेरफार मुझमें।
अदावत करता हूँ तू ना समझना बगावत, हम भी चाहते है कभी कभार जिद करना।


- डॉ.संतोष सिंह