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Hymn No. 1904 | Date: 30-Jul-2000
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दास्ताँ मेरी बड़ी अजीब है, जिनके लिये तरसते है लोग वो मेरे करीब है।
दास्ताँ मेरी बड़ी अजीब है, जिनके लिये तरसते है लोग वो मेरे करीब है।
फिर भी ना बना मुरीद रहके अपने रकीब के पास, हूँ कैसा मैं मजनू।
यें क्यों दिख रहे है अलग चेहरे, तनिक भी अगर प्यार सच्चा है तो हर चेहरे पे नजर आना चाहिये उसका चेहरा।
कमीं हुई न है उस ओर से, मैं ही हो गया हूँ दंभी प्यार करने का।
अधर में लटकने जैंसी हो गयी हालात मेरी, जैसे धोबी का कूत्ता घर का न घाट का।
पर जोहात बाँट मैं तेरा सदा, चाहे आयें जीवन में कितने भी दूखद क्षण।
कोई कमी दूर करने वास्ते न किया था प्यार, यार स्वार्थ से की थी शुरूआत जरूर।
आज हूँ अपने किसिम का अकेला, मूर्ख ही सही पर तुझसे कियॉ हूँ प्यार जरूर।
मेरा कही योग ना है माना, प्रियतम प्यार तेरे जोर से किया है तो जरूर।


- डॉ.संतोष सिंह