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Hymn No. 1889 | Date: 25-Jul-2000
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मत कर मेरी बातों का कुछ एतराज, जिस तरह मेरे होने का ना है मतलब कुछ।
मत कर मेरी बातों का कुछ एतराज, जिस तरह मेरे होने का ना है मतलब कुछ।
दिल की कहाँ करने की आदत है, तुझे झलके इसमे मेरी मुर्खतायी तो क्या करूं।
कितना भी हो दोष मुझमें, तु नवाज मुझे अनेकों उपाधियों से कबूल है दिया हुआ तेरा।
मेरी कोई बात चुभी हुयी हो दिल को तेरे, देना तू सख्त सजा देख के कर ले हर कोई तौबा।
भोगा हूँ अपने हिसाब से बहुत कुछ, पर तेरे हिसाब से कुछ नहीं अभी जो कर दे सही।
मेरे मालिक तेरे चरणों में बैठे मुझे गाते रहने देना, पंक्तियाँ यें चाहे तू जी भरके हंसना।
वहम मेरा तोड़ना बेहिचक, प्यार में ना रखने देना तू कोई कसक।
दसियों सदियें से देखाँ हूँ तुझे पाने का ख्वाब, अब उस ख्वाब को टूटने ना देना।
वजह तो पैदा होते रहती है बिन् बात के, परदान डालके तू मिटाना हमारे राह से।
हम भी न छोंड़ेगे तेरा साथ, चाहे निकलती रहे तन से कितनी भी आह।


- डॉ.संतोष सिंह