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Hymn No. 1755 | Date: 16-May-2000
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मैं न जानूँ कैसे करते है तेरी कथा।
मैं न जानूँ कैसे करते है तेरी कथा।
दास पहुँचते तेरे सुनाने को करता है हाल दिल का।
कैसे उतारूँ मैं तेरी आरती आये ना गीत भक्ति का।
ऩजरों से ऩजर मिलते गाने लगता हूँ गीत प्रीत का।
जानू ना कौन सा मंतर पढके जीता जाता है तुझको।
तड़पता हूँ याद कर – करके तुझे न्योछावर करने के वास्ते।
देख ले तू मेरे भीतर, सिवाय ना है कोई तेरे।
जी जान से रहता हूँ मशगूल ख्यालों में तेरे।
मैं अपनी हरकतो पर मचाता हूँ बवाल बहुत।
कर लेना तू कई सवाल, पर रखना तू याद सदा।


- डॉ.संतोष सिंह