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Hymn No. 1754 | Date: 15-May-2000
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कौन है तेरे सिवाय जिसे कह सकूँ अपना।
कौन है तेरे सिवाय जिसे कह सकूँ अपना।
दर दर हूँ भटका तेरे वास्ते और तू ना मिला।
शक करता हूँ अपने तड़पने पे कहीं झूठे तो नहीं।
तेरे सिवाय कर ना सकता गुमां किसी और पे।
नाम जुबाँ पे है तेरा, देख ले झाँक के दिल में है तू।
खदबदा रहा हूँ भीतर – ही भीतर बहुत कुछ कहने के वास्ते।
पाके तुझे भूल जाता हूँ सारे जहाँ को।
रहके कोई ना रहता है पास मेरे जब होता है तू।
कोई दे या न दे साथ मेरा पर होगा हाथ तेरा।
मरना जीना सब कुछ है यार तेरे प्यार पे।


- डॉ.संतोष सिंह