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Hymn No. 1746 | Date: 12-May-2000
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उठते है मन में अभी भी कई ख्याल लेके तुझे।
उठते है मन में अभी भी कई ख्याल लेके तुझे।
कैसे रह लेता है तू संसार में इतना साधारण बनके।
मालिक है तू अनंत का, फिर भी भोगे कम से कमतर का साधन।
तू चाहे तो क्या ना कर सकता है, फिर भी जीता है हम तुच्छों के साथ।
कंपकंपा जाता हूँ देखके तेरी अनवरत साधना जो करता है तू जहाँ के वास्ते।
क्या नहीं करता, क्या ना सहके, फिर भी जानके बहकते है हम।
दम भरते है तेरे नाम का, क्यों ना पीते है तेरे प्यार का जाम जी जान से।
हमको राह पे लाने वास्ते क्या न करता तू तब भी ना लेते है सीख।
अरें इतनां भी ना समंझ हूँ, न जाने कितनी बार दुखाँया दिल को तेरे।
अब बहुत हो गया, अब ना दूँगा मौका, तेरी छोड़ खुदको खुद से कहने का।


- डॉ.संतोष सिंह