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Hymn No. 1745 | Date: 12-May-2000
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हर कोई ढुँढ़ रहा है जिसने ढुँढ़ा जिसको मिला उसका वो।
हर कोई ढुँढ़ रहा है जिसने ढुँढ़ा जिसको मिला उसका वो।
कब होंगी तलाश पूरी मेरी, होने को होती जा रही है जिंदगी खलास।
ऐसा क्या गुनाह किया था, जो तू दूर भागे मुझसे सदा।
लगता है मेरा प्यार बिल्कुल रास न आया, जो तुझे ना खीच पाया।
व्यथा मेरी क्या है कोरी, जो तेंरे में ना है जगह पाती।
क्या अपने प्यार को सच्चा साबित करने के वास्ते देनी पड़ेगी शहादत।
चुकूँगा ना मैं कुछ करने से, तुझे रिझाने के लिये कर जाऊँगा मैं कुछ भी।
तू ही बता इस आहत मन को तेरे सिवाय कहाँ से मिलेगी राहत।
क्या करना होगा तेरी खफा दूर करने वास्ते, जो ना होना पड़े फिर जूदा।
अब ना तू रूला इतना, कि रोते – रोते आँसू बनके रह जाये जीवन मेरा।


- डॉ.संतोष सिंह