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Hymn No. 1743 | Date: 11-May-2000
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मेरे दिल का जर्रा - जर्रा रो रहा है प्यार के वास्ते तेरा।
मेरे दिल का जर्रा - जर्रा रो रहा है प्यार के वास्ते तेरा।
चाहता है मेरा मन निपट अकेले में बतीयाते रहना मन भरके।
बयाँ करना चाहता हूँ अपनी अबूझ हरकतों के बारे में तुझसे।
इजहार करना चाहता हूँ अपने अनछुये प्यार को तेरे आगे।
बीताना चाहता हूँ नजरों में नजरें डालके सारे का सारा जीवन।
जो आये जी में सब का सब उड़ेल देना चाहता हूँ तेरे आगे।
अभागा हूँ मैं सबसे बड़ा, तेरे साथ रहके कह न पाया कुछ तुझसे।
बदनसीबी ये क्या कम है, दीवानों की महफिल में रहके बन पाया न दीवाना।
कब होगी आस पूरी मेरी, उड़ाना है जिसको जितना चाहे मेरा उपहास।
अपरम्पार प्यार तो नहीं, पर थोढ़ा सा ही सही, प्यार तो है तुझसे।


- डॉ.संतोष सिंह