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Hymn No. 1668 | Date: 16-Apr-2000
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इक् साज बनाने की है तमन्ना जिसे बजाऊँ तो जाये झूम तेरा दिल।
इक् साज बनाने की है तमन्ना जिसे बजाऊँ तो जाये झूम तेरा दिल।
मन से उठे स्वर लहरियाँ, जो कर जाये विभोर तेरे मन को।
दिल का ही रूनझुना बजाऊँ हो तन्मय, जो जाये झनझना तेरे दिल को।
होता जाये सुर – संगीत का अनुपम मेल, तड़प उठें तू मिलन के वास्ते।
बंध जाये समाँ ऐसा, भूलें हम तूम अपने – अपने अस्तित्व को।
गुंजे बाहर भीतर एक ही समय एक ही राग साथ – साथ और चारों।
भेंद ना हो किंचित मात्र का, संगीत होने पे करायें बोध निस्तब्धता का।
दायरा ना हो उसका कोई, गुंजे चाहूँ दिशाओं में अनंत सीमाओ तक।
जमाया हूँ ऐसा समा जम जाये सारा ब्रह्माण्ड, लयबध्द नाच नाच के।
चेतन – अचेतन का हर भेंद मिटाकें, गुलजार हो जाये हर कण – मन् स्वरूप में तेरे।


- डॉ.संतोष सिंह