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Hymn No. 1665 | Date: 14-Apr-2000
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कहने को तो कहा जाता है, ढाता है तू जुलम मुझपे।
कहने को तो कहा जाता है, ढाता है तू जुलम मुझपे।
पर सच पूछो तो कहीं का ना छोड़ते है हम तुझे।
रहता है कितना अंतर हमारी कथनी – करनी में, देखता है तू।
तेरी उदारता देखके आती है शर्म, फिर भी ना लेते है सीख।
उदारता है तेरी – तेरी तरह अपरंपार, इसलिये समायी दुनिया दिल में तेरे।
जबरन बात बनाते है हम, करके वादा झूठा प्यार का।
तेरे पास तेरी बातें, संसार में जाते कोई और ख्वाब देखते।
सच पूछो तो आने लगा है तरस – शरम अपने आप पे।
खाया झटका फिर भी मन भटका, कैसे होगा अंत इस दुःस्वप्न का।
तुझे ना है फरक पड़ता, पर हमको तो फरक पड़ता है बहुत।


- डॉ.संतोष सिंह