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Hymn No. 1664 | Date: 14-Apr-2000
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बहुत दें दी सजा तूने अब पिला दे प्रेम रस मुझे।
बहुत दें दी सजा तूने अब पिला दे प्रेम रस मुझे।
व्याकुल है मन मेरा बेताबी से राह देखूँ मिलने तुझसे।
माना कि सिर्फ दोष है मेरा, न जाने कैसे पनप जाता है।
कम ना की कोशिश हमने, दमन-शमन करके देख लिया सब।
तूने भी बरसाया भरपूर कृपा, पर मौका गँवाया हर बार।
आता हूँ दरबार में तेरे इस आस से, आज का आज जीतूँगा तुझे।
गिरा बहुत बार अपनी नजरों में, अब ना गिरने देना तू मुझे।
हमने तो देखा था ख्वाब प्यार में तेरे चुपचाप जीने का।
सम्भल – सम्भलकें कदम धरा, कब भटका राह पता ना चला।
अब तो करना है तुझे कमाल, मचाऊँ प्रेम राह में धमाल।


- डॉ.संतोष सिंह