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Hymn No. 1660 | Date: 12-Apr-2000
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कितना भी जानता हो मुझे, पर तू मुझे जानता नहीं।
कितना भी जानता हो मुझे, पर तू मुझे जानता नहीं।
तेरी कृपा है बहुत हमपे, जो चाहेंगे कर दिखायेंगे जरूर।
शिकवा ना है तुझसे कोई, दिल पे जख्म है अपनी उलफतों के।
सितमगर तू रहा चुप, लाख ढाया सितम हमने तुझपे।
अनायास आँखों ने झाँका वहाँ पाया अनंत सागर प्यार का।
क्या न किया तेरे नाम पे, सबूत दिया पल – पल बेवफाई का।
काँपी धरा देखके हमारा किया, फिर भी तूने ना किया उफ्।
लगे हमको अपना दुःख बड़ा, और तूने स्वीकारा मुझ जैसे अरबों को।
लाख बेवफाई का सिला दिया, फिर भी तूने प्यार किया।
सुधरना होगा तो करना होगा कुछ, करवा ले तू मुझसे प्यार से।


- डॉ.संतोष सिंह