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Hymn No. 15 | Date: 10-Jul-1996
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माटी से बना माटी में मिल जाना है,
माटी से बना माटी में मिल जाना है,
मानव तन को, कर ना सका सार्थक ।
क्यों मोह करूँ इसका हो के ना हो सका अपना ;
कर दें अस्तित्व हीन .......
ना था मैं, ना हूँ, ना ही रहूँगा ;
सारे दुःखों की जड कट जाये अपने आप ;
तेरा था, तेरा ही हो जाऊँगा ।


- डॉ.संतोष सिंह