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दिनांक: 20-Dec-2001
खुली आँखों से देखे गए ख़्वाब को कहते हैं ज़िंदगी |
और बंद आँखों के होते ही, श्वास लेते हैं यथार्थ से भरी दुनियाँ में |


- डॉ.संतोष सिंह


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