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Hymn No. 525 | Date: 28-Dec-1998
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मेरा आवाज तू है, मेरा सूर तू है, तेरे सिवाय कौन है मेरा।
मेरा आवाज तू है, मेरा सूर तू है, तेरे सिवाय कौन है मेरा।
सब कूछ बदला, बनके मिटा मैं कई बार, तेरा – मेरा संग शाश्वत है सदा से ।
तू अकाल – अनंत सदा से, तुझसे उपजें तुझमें ही सीमटें हर बार हम ।
आगाह किया कई बार हमें, प्रीत का ज्योत जगाकें तूने जीवन जीना सीखाया ।
लत लगा रखी है मन को हमनें, मायावी धरा के भोगों की।
हर बार चेताया तूने, ज्ञान की कीरनों से नहलाया हर काल में ।
बहुत बार बदलें, बदलकें बदल गये, तूझे कहीं हुयीं हर बात से मुकर गये।
देखकें सब कूछ अंजान बना रहके प्रेम तूने हम सबसे किया।
शरम आती हें अपने जीवन पे, सतातें है हम फिर तेरे पहलू में आकें रोतें है ।
दे दें हमारें अंदर इतनी दृडता, सबसे बेखबर हो तेरे संग गुजार दे ये जीवन।


- डॉ.संतोष सिंह