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Hymn No. 524 | Date: 27-Dec-1998
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इतना सता तू मुझे, गुहार लगाता रहूँ हर पल मैं तूझे ।
इतना सता तू मुझे, गुहार लगाता रहूँ हर पल मैं तूझे ।
तन में दर्द हो या दिल में, हम कीसी ना कीसी बहानें याद करें तूझे ।
जाम का नशा शाम होते चढती है, दिन ढलते उतर जाती है ।
तेरे प्रति प्यार का नशा उम्र दर उम्र बढती जाये बिन कुछ कहें सुनें ।
आगोश में समां जाना चाहता हूँ तेरे, बिन फरियाद कीयें तुझसे ।
कीमत चुका नहीं सकता पल भर का, जो सान्निध्य मिलता है तेरा।
लालायीत हूँ कहीं भीतर से, तोड़ना सीखा दें सारी वर्जनाओं को ।
हित अहित मैं भूल जाऊँ अपना, मेरा हर सपना जुड़ा हो तुझसे ।
समझता है तू खुब हमें, हम ही ना समझ पातें तूझे।
फिर क्यों तू लेता है हमारी वफा की परीक्षा, क्यों अब भी बन सकते है हम बेवफा।
तेरी मर्जी के आगे मुझे ना करनी है, कोई शिकवा शिकायत।
हम तो बेकरार है इस इंतजार में, कब बनेंगे तेरे चरणों की धूल ।


- डॉ.संतोष सिंह