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Hymn No. 509 | Date: 17-Dec-1998
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जगा के मालीक सुन लें तू पुकार हमारी, जब – जब घिरतें है घोर कर्मों से।
जगा के मालीक सुन लें तू पुकार हमारी, जब – जब घिरतें है घोर कर्मों से।
पुकार लगाते है तूझे बड़ी जोर से, विषयों का आसक्त बननें ना दें तू हमें ।
क्यें है हम कमजोर इतनें डूब जातें है, वासनाओं के सागर में ।
यें कब मन में प्रवेश कर जात है, और तन तृण के समान उड जाता है आँधीयों में ।
सच्ची भक्ति माँगता हूँ मैं तुझसे, अश्रुपूरीत हद्रय से तेरे चरणों में निवेदन करता हूँ ।
डरता हूँ मैं तुझसे बहुत ही अलग होनें के डर से, पर प्यार उससे ज्यादा हूँ तुझसे करता मैं।
जो कुछ भी हूं आज मैं प्रभु तेरी दया से, चाहें जो कमीं हो, किंचित मात्र अभिमान ना है मुझे।
बिलखता हूँ कहीं भीतर से तूझे पानें के लिये, इस हद्रय को तेरी छवी से सजाने के लिये ।
उम्र भर की खुशीयाँ लूटानें से अगर तू मिलता है तो मंजूर है मूझे ।
मेंरी लायकी कूछ भी नहीं, पा सकू धूली तेरे चरणों की, पानें के लिये खाक में मिलनें को हूँ तैयार मैं ।


- डॉ.संतोष सिंह