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Hymn No. 5 | Date: 01-May-1996
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मैं हारता हूँ ; जीतता हूँ ।
मैं हारता हूँ ; जीतता हूँ ।
मैं नही हम हारते है ; जीतते है ।
जीतते – जीतते हार जाते है ।
कभी – कभी हारते – हारते जीत जाते है ।
सुबह से शाम हो जाती है ।
दिन से रात हो जाती है ।
पलक झपकते ; जिंदगी तमाम हो जाती है ।
न आने का ; न जाने का ; अर्थ समझते है ।
फिर भी जीने को बेताब रहते है ।
जागते हुऐ सोते है हम ;
जान के अंजान ; लिपटें – चिपटें है .......
बदल के भी ना बदलना चाहते है ;
दोष जमाने को देना चाहते है हम ।


- डॉ.संतोष सिंह