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Hymn No. 2868 | Date: 02-Nov-2004
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ये जीवन का कैसा दौर है, जो बिताये ना बीते, रह रहके तड़पाये फिर भी न मारे।
ये जीवन का कैसा दौर है, जो बिताये ना बीते, रह रहके तड़पाये फिर भी न मारे।
बहुत चाहा इस से उबर जाना, कुछ पलों के वास्ते भुला जरूर, फिर हाल वहीं का वहीं था।
गुस्ताखी माफ करना प्रभु, क्या आधे अधुरों का हाल यही होता है, जीवन में वो रोता है।
तू न चाहेगा जब तक, तब तक कर न पाऊंगा कुछ, चाहे रास्ते हो अधायत्म के या दुनियादारी।
माना कि ये घोर कर्म है हमारे, पर हम हैं तेरे सहारे, मत छोड़ हमको मझधार में पार करा दे।
गुहार करता रहूँगा, चाहे छूट जाये श्वासों की डोर, पर तुझमें आस नहीं तोडूंगा।
है ना मेरे पास, इन आधे अधूरे गीतों के सिवाय, जो निकलते है रूंधे गले से अस्पष्ट से स्वरों मैं।
अब तो तू मान जा, डूबी नैय्या को तार जा, देने को ना है कुछ मेरे पास, फिर भी कर दे तू बेड़ पार।
आने ना दूंगा आंच तेरे नाम पे, सारी कसर लगा दूँ, बस करा दे बेड़ पार इस बार तू मेरा।
जो आज ना हुआ दिखता है, वो अब का अब पूरा होगा, तेरे चाहते खुल जायेगे बंद मेरे सारे रास्ते।


- डॉ.संतोष सिंह