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Hymn No. 2863 | Date: 29-Oct-2004
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अंतर के किसी कोने से उमड़े तेरा प्रेम, रह रहके गोते लगाऊँ आनंद मैं।
अंतर के किसी कोने से उमड़े तेरा प्रेम, रह रहके गोते लगाऊँ आनंद मैं।
तब सिहरन सी पैंदा हो रोम रोम मैं, कुछ पल के वास्ते बिसर जाडँ अपने आप को।
ना सोया रहता हूँ ना जागा, मत्रमुग्ध हो डूबा रहता हूँ मीठे मीठे ख्यालों मैं तेरे।
तब विरह की अगन जलाये रोम रोम को मेरे, चीतकार कर उठूं पाने को तुझे।
एक के बाद दूजा न जाने कितने ख्याल आये, रातों को चुपके से नीदों सें जगाये।
बातें होती हैं ढेर सारी बिना शब्दों के, मुलाकात खत्म होके सुबह की किरणों से।
समझना चाहके भी समझ नहीं पाता हूँ, की तेरे बिना जिंदगी को कैसे जी पाता हूँ।
मन ही मन फिर तड़पता हूँ, बिना किसी प्रयास के तुझे पाने के ख्वाबों को संजोता हूँ।
जलना चाहूँ उस सूरज की तरह दिन रात, तेरे प्रेम पीड़ा में खुद को हवन कर देना चाहता हूँ।


- डॉ.संतोष सिंह