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Hymn No. 2851 | Date: 19-Oct-2004
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पलो का खेल है, जीवन भर का जेल है।
पलो का खेल है, जीवन भर का जेल है।
एक पल में मौत है, तो दूजे पल में जन्म है।
घटाये घटता नही, ना ही किसी पल रुकता है।
चलता जाये पल पल, जग को बदलता जाये।
अनवरत सत्य को राम कृष्ण के रूप मैं समझाये।
निचोड़ के रख देता है, सार को छोड़ देता है।
संतो के आगे नाचे, माया का खेल दिखाये लोगों को।
रहे सबके संग सदा, बिरला हो कोई जान पाये।
धनवान हो या गरीब, बलवान हो या कमजोर,
पर्दा उठाके, दूजा पर्दा गिराये, बार बार इस खेल को दोहराये।


- डॉ.संतोष सिंह